रनिंग की मनोहर कहानियाँ

The Game of Running

    ~ सिद्धार्थ शुक्ला

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आज सुबह एक कम से कम "46 इंच" की तोंद वाले सज्जन मिले और उन्होंने अपनी इच्छा प्रकट की कि वो एक मैराथन ऑर्गनाइज करवाना चाहते हैं। हमने पूछा क्यों? वो बोले लोगो को "फिटनेस" के लिए इंस्पायर करना है । हम कभी उनको और कभी उनकी तोंद को देखने लगे। थोड़ा सकपका कर भाईसाब बोले "कोई मुश्किल नही है , वेंडर सारे अपने पास है , अथॉरिटीज , ट्रेफिक वालो को कुछ ले देकर सब काम हो जाएगा । अपने को बस टीशर्ट और मैडल छपवाने है तो सस्ती से सस्ती टीशर्ट देखेंगे 40 / 50 रुपये पर पीस , मैडल भी 50 रुपये के अंदर बन जायेगा। नाश्ते में पोहा , शीरा चाय कुछ भी चल जाएगा। हम भौचक्के से उन्हें देख रहे थे।

उनके साथ आयीं महिला जो हमे "फेसबुक धाविका" सी लगीं, मन्द मन्द मुस्कुरा रहीं थी मानो उन्हें बस हमारी हाँ का इंतज़ार हो, हम उन्हें फेसबुक पे देख चुके हैं एक झटके से हमे याद आया , ये वही महिला हैं जो किसी रन इवेंट में गप्पे मारते हुए "चलतीं" हैं और किसी कैमरे पे नज़र पड़ते ही फट्ट से दौड़ने लगती हैं। और जैसे ही इन्हें आभास होता है कि फोटो खींची जा चुकी हैं ये पुनः अपने वास्तविक रूप में आ जाती हैं, खुद ने कभी 20 दंडबैठक न लगाएं हो ज़िन्दगी में कभी , मगर ये लोगो को 108 दंडबैठक लगाने को "इंस्पायर" करती रहतीं हैं। यही नहीं अपने मोहल्ले की जानी मानी "कोच" भी हैं।

खैर , उनके साथ आये साहब लोगो को फिट करने के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने 10 मिनट के अंदर पूरे इवेंट का लेखा जोखा बता दिया, स्पांसर से कितना पैसा लेना है, रजिस्ट्रेशन से कितना पैसा आएगा, हाइड्रेशन वाले से कितना माल जब्त करना है , कॉस्ट कैसे कम करनी है जिससे कि लाभ अधिक हो और "कट" का भी जिक्र हुआ । "कट" मतलब आपका कमीशन जो अधिक से अधिक लोगो को रजिस्टर कराने के एवज में आपको मिलता है और थोड़ा " इन्वेस्टमेंट " भी आपको करना होता है इसलिए।

हमने सवाल दागा - " पर इतने सारे रेजिस्ट्रेशन आएंगे कहाँ से"?

साहब अपनी पैंट को थोड़ा तोंद के ऊपर चढ़ाते हुए बोले - "अरे, आसान है ये तो , इतने सारे रनिंग ग्रुप हैं उनके नेताओं को पकड़ के हमे उन्हें "एम्बेसडर" , "इवेंट फेस" , "चैंपियन" कुछ भी बना देना है बाकी वो सब संभाल लेंगे मोमेंटो या ट्रॉफी 100 रुपये के अंदर बन जायेगा । थोड़ा सोशल मीडिया में शोर मचाएंगे, कोई कॉज जोड़ देंगे वैसे भी आजकल आरे, पर्यावरण, प्लास्टिक ट्रेंड में चल रहे हैं, नारी सशक्तिकरण , बाल मजदूरी आउट ऑफ डेट हो गया है थोड़ा ओल्ड टाइप्स लगता है। उनके साथ आयीं फेसबुक धाविका अपने होठों पर 'लिप बाम" लगा चुकी थीं और उनके मैनेजर साहब की बातें सुन कर हमें सरदर्द के बाम की आवश्यकता महसूस होने लगी थीं।

तमाम कोशिशों के बाद भी मैनेजर साब की पेंट तोंद से नीचे सरक ही जाती थी और अब उनके कमीज के निचले दो बटन भी जवाब देने वाले थे।

"देखिए अपने को बस मैनेज करने का काम है, बाकी लोग आएंगे भागेंगे ,खाएंगे ,पियेंगे और जाएंगे " मैनेजर साहब बोले

"मगर लोगो को फिटनेस के लिए इंस्पिरेशन कैसे मिलेगा?" हमने पूछा ।

"अरे सर, 10 / 20 हज़्ज़ार में कोई भी "जुम्बा" वाला पकड़ लेंगे वो इंस्पायर करता रहेगा। मैनेजर साब पूरे कॉन्फिडेन्स के साथ बोले

दुनिया इतनी रफ्तार से बदल रही है और तुम अपना मोबाइल गारमिन के साथ सिंक करने में ही लगे हो सिद्धार्थ बाबू, मन मे सोचते हुए हमने मैनेजर की तरफ देखा जो परमसन्तुष्टि के भाव से अपने साथ आईं महिला की तरफ देख रहे थे ।

और हम उनकी पैसे, वेंडर , जुगाड़ , सेटिंग के मायाजाल में "फिटनेस" के लिए "इंस्पिरेशन" ढूंढ रहे थे।

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Disclaimer: All characters in this story are fictitious. Any resemblance to any real person is purely a figment of your own imagination 😊

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